देश में अदालतों पर केसों का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। क्योंकि अदालतों की प्रक्रिया जटिल व लंबी होने के साथ-साथ खर्चीली भी है। इसके उपचार के लिए देश में लोक अदालतों की शरूवात की गई है।
लोक अदालत - लोक अदालतों के माध्यम से ऐसे लंबित
मामलों जिसमें आपसी सहमती से मामलों का हल निकाला जा सकता है या ऐसे मामलें जिनमें
थोडी व मामूली जुर्माना राशी अदा कर मामलों को जल्द व त्वरित कार्रवाई करते हुए,
उनका निबटारा किया जाता है।
लोक अदालतों का गठन भारतीय संविधान की
प्रस्तावना द्वारा दिए गए वादे को पूरा करने के लिए किया जाता है, जिसके अनुसार- भारत के प्रत्येक
नागरिक के सामाजिक, आर्थिक
और राजनीतिक न्याय को सुरक्षित करना कहा गया है। संविधान का अनुच्छेद 39A समाज के वंचित और कमजोर वर्गों को
निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने की वकालत करता है और समान अवसर के आधार पर
न्याय को बढ़ावा देता है। संविधान के अनुच्छेद 14 और 22(1) भी राज्य के लिए कानून के समक्ष
समानता की गारंटी देना अनिवार्य बनाते हैं। वहीं
लोक अदालतों के माध्यम आम जनमानस में ये विश्वास पैदा करने का प्रयास किया जाता है कि अदालतों का काम केवल सजा देना ही नहीं है अपितु कानून का पालन न करने वालों को उसके दायरे में लाकर उन्हें ये अवगत करवाने का प्रयास है कि प्रत्येक स्थिती में कानून का पालन हो।
लोक अदालत के उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
लोक अदालत भारतीय न्याय प्रणाली की उस
पुरानी व्यवस्था को स्थापित करता है जो प्राचीन भारत में प्रचलित थी। इसकी वैधता
आधुनिक दिनों में भी प्रासंगिक है ।
भारतीय अदालतें लंबी,
महंगी और थकाने वाली क़ानूनी
प्रक्रियाओं से जुड़े मामलों के बोझ से दबी हुई हैं। छोटे -छोटे मामलों को निपटाने
में भी कोर्ट को कई साल लग जाते हैं । इसलिए, लोक अदालत त्वरित और सस्ते न्याय के लिए वैकल्पिक समाधान या
युक्ति प्रदान करती है ।
औपचारिक व्यवस्था से हट कर अपने
मामलों को निपटाने के लिए जनता को प्रोत्साहित करने का अवसर लोक अदालतों में दिया
जाता है।
लोक अदालतों के लाभ
लोक अदालत जल्द व सस्ती न्याय के लिए वैकल्पिक समाधान या
युक्ति प्रदान करती है। इनमें नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908,
और भारतीय साक्ष्य अधिनियम,
1872 जैसे
प्रक्रियात्मक कानूनों का सख्ती से पालन नहीं किया जाता।
संयुक्त समझौता याचिका दायर करने के
बाद लोक अदालत द्वारा जारी किए गए फैसले को दीवानी अदालत के डिक्री का दर्जा प्राप्त
हो जाता है। यह फैसले मानने के लिए दोनों पक्ष बाध्यकारी होते हैं और इनके खिलाफ
अपील नही की जा सकती।
इनमें कोई न्यायालय शुल्क नहीं है और
यदि न्यायालय शुल्क का भुगतान पहले ही कर दिया गया है, तो लोक अदालत में विवाद का निपटारा
होने पर राशि वापस भी की जा सकती है। लेकिन उसके लिए संबंधित लोक अदालत अलग से
भुगतान वापिस करने का आदेश जारी करती है।
लोक अदालतों के माध्यम से दो वर्ष से
कम सजा के प्रावधन वाले लंबित मामले आपसी सहमती से निबटाये जा सकते हैं।
लोक अदालतों के माध्यम से ट्रेफिक के
चलानों का भी निस्तारण किया जा सकता हैं। इसमें ट्रेफिक चलानों के निस्तारण को
लेकर जुर्माने में भारी छूट देकर ट्रेफिक चालानों का निस्तारण किया जाता है।
देश के प्रत्येक राज्य में लोक
अदालतें समय-समय पर लगाई जाती हैं। इसकी जानकारी के लिए संबंधिति विभाग टीवी व
अखबारों के माध्यम से जानता को इसकी सूचना देते हैं। साथ उस प्रक्रिया का विवरण भी
अखबारों में विज्ञापन के माध्यम से प्रकाशित किया जाता है। जिससे कोई भी व्यक्ति
लोक अदालतों की प्रक्रिया का हिस्सा बन सके ओर इन लोक अदालतों का लाभ उठा सके।