Divorce लेने को आसान बनाता है Mutual Divorce
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Divorce लेने को आसान बनाता है Mutual Divorce

 


 


 

यदि आपका वैवाहिक जीवन संतोषजनक नहीं है तो आप न घर खुश रह सकते हैं और न ही बाहर, क्योंकि घर में हो रही कलह आपका जीवन बर्बाद कर देती है। कई बार तो ये पारिवारिक कलह में लोग कभी-कभी सुसाइड तक जैसा कदम उठा लेते हैं। जोकि बहुत ही पीडा दायक होता है। इसलिए अगर रिश्तों में खटास है और वैवाहिक जीवन संतोषजनक नहीं हो पा रहा है तो आपसी सहमति से तलाक लेना एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

आपसी सहमति से कैसे तलाक (Divorce) ले सकते हैं. इसके लिए कौन सी शर्तों को पूरा करना जरूरी है। तलाक कैसे फाइल करें। इसकी पूरी जानकारी आपको इस लेख के माध्यम से मिल जाएगी।

हमारे देश में हिंदू विवाह एक धार्मिक और कानूनी प्रक्रिया है। ये Hindu Marriage Act Of 1955 के तहत आता है। अगर आप विवाह (Marrige) के रिश्ते (Relation) से खुश नहीं है और अलग होना चाहते हैं, तो कानून आपको तलाक (Divorce ) के जरिए इसे समाप्त करने की अनुमति देता है। तलाक (Divorce) दो तरह से होते हैं एक पारस्परिक आपसी सहमति से तलाक (Mutual Divorce) और दूसरा एकतरफा तलाक की अर्जी लगाना (Contested Divorce) कहलाता है। आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया में दोनो पक्ष यानि पति पत्नी पारस्परिक रूप से अलग होने और विवाह को खत्म करने का फैसला लेते हैं। आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13B (1) (Hindu Marriage Act/Section 13 B (2)) के तहत एक प्रावधान (Provision) दिया गया है। इसमें कुछ शर्तें दी गई हैं जिन्हें दोनों पक्षों की ओर से पूरा किया जाना जरूरी है। जानते हैं तलाक कैसे फाइल कर सकते हैं। तलाक देने के लिए क्या शर्तें पूरी करनी पड़ती हैं। आपसी सहमति से तलाक की पूरी प्रक्रिया क्या है?

 

वरिष्ठ वकील ललित मैनी के अनुसार हिंदू विवाह एक धार्मिक संस्कार माना जाता था। जिसमें तलाक या अलग होने का कोई प्रावधान नहीं था। शादी को कई जन्मों का रिश्ता माना जाता रहा है, लेकिन आजादी  के बाद हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में भी तलाक के प्रावधान को जोड़ा गया। इसके बाद से एक पत्नी रखना हिंदू विवाह की प्रमुख शर्त हो गई। अगर आप दूसरी शादी करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको पहली पत्नि से तलाक लेना पडेगा।

 

Mutual Divorce के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना होता है।

1. Mutual Divorce कोर्ट में फाइल करने के लिए शादी को कम से कम एक वर्ष हो चुका हो। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में इसको तोडा जा सकता है लेकिन उसकी इजाजत देना या न देना कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है। कोर्ट परिस्थितियों के अनुसार इस पर अपना फैंसला देता है।

2. दोनों यानि पत्ति-पत्नि के बीच साथ रहने की सभी संभावनाएं खत्म हो चुकी हों। दोनों पक्षों में जब कोई सुलह की स्थिति नजर नहीं आती तब ही आप Mutual Divorce फाइल कर सकते हैं।

3. Mutual Divorce के लिए दो बार कोर्ट में याचिका फाइल करनी होती है। पहली व दूसरी याचिका के मध्य कोर्ट 6 माह का समय दोनों पक्षों को देता है जिससे वह अपने-अपने स्तर पर ओर विचार कर सके। अगर कोई पहली याचिका के बाद दूसरी याचिका दाखिल नहीं करता तो पहली याचिका 18 माह के बाद स्वंय ही स्थिगित हो जाती है। इससे पूर्व दोनों में से कोई भी पक्ष यदि चाहे तो अपनी पहली याचिका को वापस भी ले सकता है।

4. सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कुछ नए प्रावधानों के अनुसार यदि दोनों पक्ष चाहे तो कोर्ट द्वारा निर्धारित 6 माह में दाखिल करने वाली दूसरी याचिका को कम करने के लिए एक आवेदन भी दे सकता है। सभी पहलुओं को जांचने को बाद यदि कोर्ट यदि ठीक समझता है तो दोनों याचिकाओं के मध्य इस अंतर को खत्म भी कर सकता है। लेकिन यह सिर्फ ओर सिर्फ कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है। इस आवेदन को अधिकारी स्वरूप नहीं किया जा सकता।

5. इसके बाद पुन दूसरी याचिका दोनों पक्षों द्वारा दाखिल की जा सकती है। दूसरी याचिका के वक्त तक भी कोई भी पक्ष याचिका को वापस लेना चाहे तो ले सकता है। लेकिन कई बार कोर्ट ऐसा करने पर संबंधित पक्ष पर जुर्माना भी लगा सकता है।


6. अगर दोनों पक्षों द्वारा दाखिल की गई दूसरी याचिका कोर्ट स्वीकार कर लेता है तो उसी समय दोनों पक्षों के मध्य तलाक की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।  

 

याचिक दाखिल करने से पूर्व की प्रक्रिया

 

1. सबसे पहले तलाक के लिए दोनों पक्षों की ओर से हस्ताक्षर की गई एक संयुक्त याचिका फैमिली कोर्ट में दायर करनी होती है। यह याचिक दोनों पक्ष अपने-अपने पते के अनुसार किसी एक के पत्ते को आधार बना कर उस क्षेत्र मेें स्थित फैमिली कोर्ट में कर सकते हैं। 
2. इस तलाक याचिका में दोनों पक्षों का एक संयुक्त बयान होता है जिसमें दोनों अपने आपसी मतभेदों की वजह से एक साथ नहीं रह सकते और तलाक लेने की बात कहते हैं।
3. इस बयान में बच्चों और संपत्तियों के बंटवारे के बारे में भी समझौता शामिल होता है।  

4. बयान दर्ज करने के बाद माननीय न्यायालय के सामने पेपर पर हस्ताक्षर किए जाते हैं।
5.  इसके बाद दोनों पक्ष को सुलह करने या मन बदलने के लिए 6 महीने का समय दिया जाता है।  

6.  अगर इन प्रस्ताव के 6 महीने में दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बनती है तो अंतिम सुनवाई के लिए यानि दूसरे प्रस्ताव के लिए उपस्थित होना होता है।
7.  अगर दूसरा प्रस्ताव 18 महीने की अवधि में नहीं लाया गया, तो अदालत तलाक के आदेश को पारित नहीं करेगी।
8.  इसमें एक पक्ष आदेश के पारित होने से पहले किसी भी समय अपनी सहमति वापस भी ले सकता है।
9.  ऐसे मामले में अगर पति और पत्नी के बीच कोई पूर्ण समझौता न हो या अदालत पूरी तरह से संतुष्ट न हो, तो तलाक के लिए आदेश नहीं दिया जा सकता है।
10.  अगर अदालत को ठीक लगे, तो अंतिम चरण में तलाक का आदेश दिया जाता है।  



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